Aligarh News: अलीगढ़ जिले के कासिमपुर पावर हाउस, जो अब तक बिजली की रोशनी देकर इंसानों की जिंदगी को बेहतर बना रहा था, अब प्रकृति के लिए भी एक करिश्मा बनता नजर या रहा है। यह जगह, जो कभी सिर्फ एक डंपिंग यार्ड के रूप में जानी जाती थी, अब देश विदेश से आने वाले हजारों पक्षियों ने इसे अपने रहने का ठिकाना बना लिया है।
शीत ऋतु की शुरुआत होते ही पक्षियों को अपने वातावरण के अनुकूल जगह की खोज में निकल पड़ते हैं। कासिमपुर पावर हाउस से निकलने वाले लाखों लीटर गरम पानी और राख ने यहां एक आर्टिफिशियल वेटलैंड या कहिए तालाब बना दिया है। जो शीत ऋतु में पक्षियों के लिए उपयुक्त स्थान है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के वाइल्डलाइफ विभाग के शोधार्थी अली अर्जान ने बताया की पक्षियों के लिए कौन सा तालाब रहने के लिए उपयुक्त है और कौन सा तालाब प्रदूषण के कारण खराब हो चुके हैं इस विषय पर वह पिछले चार वर्षों से काम कर रहे हैं। और उन्होंने पाया की पावर हाउस से लाखों लीटर पानी कार्बाइन को ठंडा करने के लिए बहाया जाता है जो एक तालाब के रूप में विकसित हो गया है। निकलने वाले पानी ओर राख के कारण यह जगह पक्षियों के निवास के लिए उपयुक्त स्थान बन गया है। जिसे अली अर्जान ने इसको आर्टिफ़िशियल वेटलेंड (Artificial Wetland) का नाम दिया।
यहां आने वाले पक्षी न सिर्फ इस जगह को अपना रहने का निवास बनाते हैं, बल्कि यह जगह पर्यावरण संरक्षण के लिए भी एक नई उम्मीद बनती जा रही है। यह वेटलैंड हजारों प्रवासी पक्षियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। कासिमपुर पावर हाउस की यह कहानी बताती है कि, जहां एक ओर मानवीय गतिविधियां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं, वहीं दूसरी ओर सही देखभाल और शोध से प्रकृति को नई जिंदगी भी जा सकती है।
क्या होते है वेटलैंड्स और कैसे करते हैं यह पर्यावरण की सुरक्षा
वेटलेंड भूमि के उस भाग को कहते हैं, जहां पूरे साल या किसी विशेष मौसम में पानी भरा रहता है। देश का 4.63 प्रतिशत भूभाग वेटलैंड यानी नमभूमि के अंतर्गत आता है। ये नमभूमि न केवल पानी की आपूर्ति का स्रोत होती है, बल्कि यह गंदे पानी को स्वच्छ पानी में बदलने का काम करती है। इन वेटलैंड्स को समझने के लिए हमें अपने आसपास के छोटे-बड़े तालाब, पोखर, झील और नदियों पर नजर डालनी चाहिए। ये वेटलेंडस न केवल जैव-विविधता को संरक्षित करते हैं बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता को भी बनाए रखने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
पिछले कई वर्षों में देश के एक तिहाई से भी ज्यादा वेटलेंडस समाप्त हो चुके हैं। इसका मुख्य कारण तेजी से बढ़ता शहरीकरण और प्रदूषण है। जिस तरह जंगलों को धरती का फेफड़ा कहा जाता है क्योंकि ये कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन को छोड़ते हैं । इसी तरह, वेटलैंड्स को धरती का गुर्दा कहा जाता है क्योंकि ये पानी को शुद्ध करने का कार्य करते हैं।